Sunday, October 6, 2013

शर्म



चेहरे पर चेहरा लगा कर घूमते हैं 

अंदर से लेकिन एक से हैं सब

नाम या चेहरा अलग रखते हैं

फितरत लेकिन एक सी रखते है

बहुत जी लिये इनके झूठ के साथ

अब हम भी इन्हे पहचानने की समझ रखते हैं

हमारी चुप को हमारी कमज़ोरी न समझना

हम बस दुनिया की शर्म रखते हैं

8 comments:

  1. bahut sahi kaha , agar koi chup hai to kya wah samjh nahi rakhta

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  2. हार्दिक आभार अरून जी

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  3. सुन्दर ,सरल और प्रभाबशाली रचना। बधाई।
    कभी यहाँ भी पधारें।
    सादर मदन

    http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

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  4. हमारी चुप को हमारी कमज़ोरी न समझना
    हम बस दुनिया की शर्म रखते हैं..
    बहुत ही सुन्दर रचना..
    :-)

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