आज कर जगह अपमान हो रहा नारी का
क्या यही बुराई पर अच्छाई की जीत होती है
हर घर के हर कोने में कोई न कोई सिसकती नारी है
क्या यही बुराई पर अच्छाई की जीत होती है
हर जगह बेखौफ घूम रहे रावण हैं
और मुँह छिपा कर जीती हर नारी है
क्या यही बुराई पर अच्छाई की जीत होती है
किसी माँ बहन बेटी की इज्ज़त सुरंक्षित नही
क्या यही बुराई पर अच्छाई की जीत होती है
हर घड़ी कही न कही अग्नि परिक्षा देती नारी है
क्या यही बुराई पर अच्छाई की जीत होती है
कहाँ मरे हैं रावण आज तो राम ही भटका नज़र आता है
क्या यही बुराई पर अच्छाई की जीत होती है
घर में बीवी रोती है और पति डिस्को में नज़र आता है
क्या यही बुराई पर अच्छाई की जीत होती है
क्या गुनाह है नारी जन्म या अपना धर्म निभाना
जब सीता ने शर्म छेड़ दी तो त्राही त्राही मच जानी है
फिर न बोलना धर्म के ठेकेदारो कुछ
अब सीता की राम से परीक्षा लेने की बारी है
संभल जाओ सब रावणो अब सीता खुद की रखवारी है
अब न्याय करेगी हर औरत अपना
अब हर रावण का संहार सीता के हाथो हो
यही सच्ची जीत होगी ,
अब अबला नही सबला है हर नारी
यही बुराई पर अच्छाई की जीत होगी सच्ची
अब यही करने की बारी है
बहुत सुंदर और सही
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुत सटीक प्रशों कि झड़ी !
ReplyDeleteअभी अभी महिषासुर बध (भाग -१ )!
आभार कालीपद जी
Deleteसच्चाई को समेटे एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई
ReplyDeleteआभार दुर्गाप्रसाद जी
Deleteआभार अरूण जी... अवश्य
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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