कौन है सहारा
जिनका मैं थी सहारा
वो किसी और का सहारा हो गये
मैं बुड़िया बेसहारा हो गयी
सोचा न था
यूँ वक्त बदलेगा
अपना खून भी रंग बदलेगा
जिन्हे ज़िन्दगी माना था
वो मौत के सामने अकेला छोड़ गये
न प्यार का ध्यान आया
न उन सात फेरों का
मुझ बुड़िया से अपने ही
मुँह मोड़ गये
मुझे बेसहारा कर गये
कोई दिल का रिश्ता भी न रूका
मेरा बुढ़ापा देख सब डर गये
याद आते हैं मुझे ही क्यो वो सब
जो वक्त आने पर रंग बदल गये
मुझ बुड़िया को बेसहारा कर गये
हर जगह एक जैसा हाल ....सुंदर
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी !
ReplyDeleteनई पोस्ट मैं
आभार कालीपद प्रसाद जी
Deleteमार्मिक
ReplyDeleteआभार
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