अकेली
मुझे छोड़ अकेली कहाँ गये
वादा था साथ निभाने का
शायद वो भूल गये
कहाँ ढूँढू कोई किनारा नज़र नहीं आता
क्या बीच मझधार छोड़ गये
ऐसे तो न थे वो
फिर अकेली क्यों छोड़ गये
क्यों सो गयी मै विश्वास करके
अब कौन आएगा पार लगाने
शायद भंवर ही थे किस्मत में
इसीलिए बीच भंवर में छोड़ गये |
Very well written. Your imagination fuels a lot of thoughts and they take us all very close to the realities of our lives.
ReplyDeleteThank you very much Sham ji
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