Saturday, August 25, 2012

हाथपंखा

पंखा

नानी के हाथ का बुना ये हाथ पंखा

अब नाम भी भूल गया

बस याद रह गयी

बच्चे हैरान हैं इसे देख कर

क्या इससे भी हवा आती है

हंसी आ गयी होठों पर

जिन बच्चों ने कूलर और ए सी देखें हो

उनकी हैरानी जायज़ है

वो क्या जाने पेड़ों की छांव

और ये हाथपंखा

सब का इकठे हो बैठना चारपाइयो पर

हर घर जैसे एक दूसरे से जुडा हो

यहाँ तो पडोसी कौन है पता नहीं

कहाँ गये वो दिन

वो चारपाईयां और हाथ पंखे


1 comment:

  1. Dil ko chhu gya........bahut hi hridyasparshi.....
    Wakai hi kaha gya wo haathpankha.......

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