मै
सब ने कहा जो भी
मैंने सदा सुना चुपचाप
आज उन्होंने भी कह दिया
सब्र का बांध टूट गया
किस्से पुछू आज
मेरी कमी तो बताओ
मुझे मेरी गलती तो समझाओ
क्या किसी को चाहना पाप है
किसी हर खता माफ करना
क्या गुनाह है
सब ने अकेली छोड़ दिया
शायद दुनिया का चलन समझ नहीं आया
आज सब से जुदा अकेली
खुद से ही पूछती हूँ
क्या सब में प्यार बाँटना गुनाह है
क्या बिना किसी उम्मीद
किसी को अपना बनना कसूर है
क्या किसी के दुःख को अपना मानना
ये भी गलत है
तो शायद मै गलत हूँ
सास ससुर को माता पिता माना
बिना किसी उम्मीद के सेवा की
ननद देवर को भाई बहन माना
बेइंतहा प्यार किया
खुद का कभी नहीं सोचा
जो सामने आया उसे गले से लगा दिलासा दिया
आज सब चलते बने
अपना अपना स्वर्थ सिद्ध करके
मै भरी दुनिया में तनहा
हैरान परेशान खड़ी रह गयी
नहीं आया मुझे दुनिया का दस्तूर
तभी आज खुद ही रोती हूँ
खुद ही चुप हो जाती हूँ
दिमाग हैरान है
दिल परेशान है
ये कैसे दस्तूर हैं
सब बदल गए
तो अब
मेरी बारी है बदलने की
अब नहीं मैं
झुकने वाली
अब नहीं मैं
रोनेवाली
अब नहीं तोड़ सकता कोई
मेरी हिम्मत को
औरत हूँ तो क्या
बहुत मज़बूत हूँ मै
मेरे प्यार को
ठुक्रानेवालो
अब संभल जाओ
अब सिर्फ रानी नहीं
झांसी की रानी हूँ मै |
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