Saturday, August 25, 2012

झांसी की रानी

मै


सब ने कहा जो भी

मैंने सदा सुना चुपचाप

आज उन्होंने भी कह दिया

सब्र का बांध टूट गया

किस्से पुछू आज

मेरी कमी तो बताओ

मुझे मेरी गलती तो समझाओ

क्या किसी को चाहना पाप है

किसी हर खता  माफ करना

क्या गुनाह है

सब ने अकेली छोड़ दिया

शायद दुनिया का चलन समझ नहीं आया

आज सब से जुदा अकेली

खुद से ही पूछती हूँ

क्या सब में प्यार बाँटना गुनाह है

क्या बिना किसी उम्मीद

किसी को अपना बनना कसूर है

क्या किसी के दुःख को अपना मानना

ये भी गलत है

तो शायद मै गलत हूँ

सास ससुर को माता पिता माना

बिना किसी उम्मीद के सेवा की

ननद देवर को भाई बहन माना

बेइंतहा प्यार किया

खुद का कभी नहीं सोचा

जो सामने आया उसे गले से लगा दिलासा दिया

आज सब चलते बने

अपना अपना स्वर्थ सिद्ध करके

मै भरी दुनिया में तनहा

हैरान परेशान खड़ी रह गयी

नहीं आया मुझे दुनिया का दस्तूर

तभी आज खुद ही रोती हूँ

खुद ही चुप हो जाती हूँ

दिमाग हैरान है

दिल परेशान है

ये कैसे दस्तूर हैं 


सब बदल गए

तो अब

मेरी बारी है बदलने की

अब नहीं मैं

झुकने वाली

अब नहीं मैं

रोनेवाली

अब नहीं तोड़ सकता कोई

मेरी हिम्मत को

औरत हूँ तो क्या

बहुत मज़बूत हूँ मै

मेरे प्यार को

ठुक्रानेवालो

अब संभल जाओ

अब सिर्फ रानी नहीं

झांसी की रानी हूँ मै

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