आदत...मुस्कुराने की: .......कहीं ऐसा तो नहीं--संजय भास्कर
कहीं ऐसा तो नहीं
हम जिन्हें अपना समझते रहे
वो ही दगा दे दे
कहीं ऐसा तो नहीं
हमने जिसे सच समझा
वो सिर्फ आँखों का धोखा था
कहीं ऐसा तो नहीं
अप सूरज भी अपनी दिशा बदल दे
मतलबी इंसानों की तरह
कहीं ऐसा तो नहीं
अब जिंदगी भटक कर रह जायेगी
अनजानी राहों की तरह
कहीं ऐसा तो नहीं
अब प्यार करने से सब डरेंगे जैसे
भयानक सपना हो कोई
कहीं ऐसा तो नहीं
अब जिंदगी वीरान हो जायेगी
रेगिस्तान की तरह
कहीं ऐसा तो नहीं
हम जिन्हें अपना समझते रहे
वो ही दगा दे दे
कहीं ऐसा तो नहीं
हमने जिसे सच समझा
वो सिर्फ आँखों का धोखा था
कहीं ऐसा तो नहीं
अप सूरज भी अपनी दिशा बदल दे
मतलबी इंसानों की तरह
कहीं ऐसा तो नहीं
अब जिंदगी भटक कर रह जायेगी
अनजानी राहों की तरह
कहीं ऐसा तो नहीं
अब प्यार करने से सब डरेंगे जैसे
भयानक सपना हो कोई
कहीं ऐसा तो नहीं
अब जिंदगी वीरान हो जायेगी
रेगिस्तान की तरह
सही कहा...कभी-कभी शिथिलता आ जाती है...सृजन की ओर सदा कदम बढ़ाते रहना चाहिए...प्रेरक प्रस्तुति !!
ReplyDeleteआभार संजय जी .....आप की बात बिलकुल ठीक है ....
Deleteजैसा आपने सोचा ...वैसा ही है ....
ReplyDeleteसोच बदलने को कहती सोच आपकी ....
शुभकामनाएँ!
हार्दिक आभार ....आप के पास दिव्य दृष्टि है ....संजय की तरह ...संजय जी
Deleteआप का ह्र्दय से बहुत बहुत
ReplyDeleteधन्यवाद,
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
आभार आप ने वहाँ बुलाया और .... मुझे इक्सी काबिल समझा ...
Deleteबहुत सुंदर बात मीठे शब्दों में
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