Saturday, July 7, 2012

आदत...मुस्कुराने की: .......कहीं ऐसा तो नहीं--संजय भास्कर

आदत...मुस्कुराने की: .......कहीं ऐसा तो नहीं--संजय भास्कर
कहीं ऐसा तो नहीं
हम जिन्हें अपना समझते रहे
वो ही दगा दे दे
कहीं ऐसा तो नहीं
हमने जिसे सच समझा
वो सिर्फ आँखों का धोखा था
कहीं ऐसा तो नहीं
अप सूरज भी अपनी दिशा बदल दे
मतलबी इंसानों की तरह
कहीं ऐसा तो नहीं
अब जिंदगी भटक कर रह जायेगी
अनजानी राहों की तरह
कहीं ऐसा तो नहीं
अब प्यार करने से सब डरेंगे जैसे
भयानक सपना हो कोई
कहीं ऐसा तो नहीं
अब जिंदगी वीरान हो जायेगी
रेगिस्तान की तरह
  

7 comments:

  1. सही कहा...कभी-कभी शिथिलता आ जाती है...सृजन की ओर सदा कदम बढ़ाते रहना चाहिए...प्रेरक प्रस्तुति !!

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    1. आभार संजय जी .....आप की बात बिलकुल ठीक है ....

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  2. जैसा आपने सोचा ...वैसा ही है ....
    सोच बदलने को कहती सोच आपकी ....
    शुभकामनाएँ!

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    1. हार्दिक आभार ....आप के पास दिव्य दृष्टि है ....संजय की तरह ...संजय जी

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  3. आप का ह्र्दय से बहुत बहुत
    धन्यवाद,
    ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.

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    1. आभार आप ने वहाँ बुलाया और .... मुझे इक्सी काबिल समझा ...

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  4. बहुत सुंदर बात मीठे शब्दों में

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