गुडिया
भारतीय नारी बस इक गुड़िया बेचारी लक्षमण रेखाओं में कैद... आज़ादी की इक सांस भी है उस पर भारी
नाम देते हैं अन्नपूर्णा का
भूखे पेट
सोती है बेचारी
लडको से बराबर दर्ज़ा
कहने को है
पर कहाँ जीतने देते हैं उसे
ये राजीनीति के व्यपारी
हर ज़ुल्म सह कर
मुस्कुराती
पिता ,पति ,बच्चों को ही
खुश रखने में
जीवन बिता देती है बेचारी
कहते हैं ये आज़ाद है नारी
इस आज़ादी पर तो गुलाम भी हैं भारी
धन्य है
आजाद देख की
बेचारी
भारतीय नारी
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