आज नाँ याद आ रही है
जाने क्यो..!!!वो मेरा रूठना
वो उनका मनाना
एक पल को भी
आंखे ओझल
न होने देमा
तब मन तड़फड़ाता था
कही उड़ने को बेचैन
अब हर वक्त
हर आज़ादी है
पर टोकने वाला को कोई नही
सही गलत बताने वाला
कोई नही
खुद राह चुनना है
खुद ही हर फैसला लेना है
माँ का आंचल भा
हज़ारो मील दूर है
जिसमे लिपट कर
दों आंसू बहा सकू
खुद ही रूठती हूँ
खुद ही मान जाती हूँ
ज़िदगी चल रही है
मां तुम्हारी एक एक बात
मैरी पलकों में सजोयी है
काश इन यादों कों
कहीं सेव कर पाती
जब जी चाहा देख तो पाती
काश वो दिन फिर लौट आते.
MISS YOU MOM
आभार यशोदा जी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बुधवार- 29/10/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 40 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,
आभार दर्शन जी
Deleteये यादें तो पहले से ही सेव की जा चुकी हैं -मन के डिस्क पर ,जब-तब उदित होगी और अपने में समेट लेंगी !
ReplyDeleteसच कहा आपने ..प्रतिभा जी ...सादर आभार
Deleteमाँ की कमी शिद्दत से महसूस होती है हर पल ...
ReplyDeleteयादों का ही संबल होता है ...
सहमत हूँ आप से ....दिगंबर जी ..आभार
DeleteDil ko chuti abhivyakti...bahut sunder !!
ReplyDeleteआभार लेखिका जी
Deleteभावुक करती रचना। माँ को सलाम।
ReplyDeleteआभार सिद्धार्थ जी
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