Thursday, August 7, 2014

नारी की बारी

नारी

सब कुछ सहती है नारी

फिर भी है क्यों

 ताडन की अधिकारी

क्यूँ मर्दों को सब माफ़ है

ये कहाँ का इन्साफ है

क्यों मर्दों को

हर गुनाह माफ़ है

क्यों नारी को

नहीं मिलता इन्साफ है

जनम देती है वो

इन मर्दों को

क्या यही उसका गुनाह

नाकाबिले माफ़ है

अब और ज़ुल्म नहीं सहना है

इन मर्दों को भी

अब सब सहना है

अब नारी की बारी है

हिम्मत रख और जाग नारी

अब आई तेरी बारी है

बहुत सह लिए तूने ज़ुल्म

अब मर्दों की सहने की बारी है

सडको पर अब

बेईज्ज़त नहीं होगी नारी

अब बेईज्ज़त करनेवालों की

बेईज्ज़ती की बारी है

13 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (08.08.2014) को "बेटी है अनमोल " (चर्चा अंक-1699)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  2. ".......नारी ताड़न के अधिकारी " तुलसीदास ने अपना गुस्सा पूरी नारी जाती पर निकाला |आज का समाज इसकी निंदा करता है | यदि कोई आदमी आज भी इसी विचार को रखता है तो निश्चित रूप से वह मानसिक रूप से अस्वस्थ है ! रचना अच्छी है |

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  3. रोना तो नारी को ही पड़ा है , युग चाहे जो भी हो ..कल भी और आज भी

    सुन्दर रचना हेतु बधाई रमा सखी | सादर

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  4. एक ताड़ना शब्द पकड लिया समाज ने
    बाकी जो हमारे वेदों मैं कहा गया है कि नारी पूजनीय है वो भूल गए
    भूल गए कैसे सटी के अपमान पर शिव जी ने तीन लोक मैं हाहा कार मचा दिया था
    सचाई समाज कि रमा

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