भीड़ में भटकती रही
लेकिन सदा अकेली
कोई हाथ ही नहीं मिला
जिसे थाम सकती
सब हाथों पर
कुछ न कुछ मैल थी
कैसे थाम लेती
जिसकी भी आंखो में देखा
एक वहशीपन देखा
इंसान कहीं न दिखा
पैर भी गंदगी से लथपथ
साथ कैसे चलती
मन में भी छल ही दिखा
भोलापन कहीं खो गया लगता है
दुनिया में
मुझे क्यों हर जगह
कुछ न कुछ
गंदगी दिख ही जाती है
शायद इसी लिये अकेली हूँ
नहीं सह पाती गंदगी
मेरी पाकीज़गी मैली हो जायेगी.
आपकी लिखी रचना शनिवार 09 अगस्त 2014 को लिंक की जाएगी........
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
आभार यशोदा जी
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteसादर
आभार यशवंत जी
Delete"
ReplyDeleteआपका लेखन बहुत सुन्दर है, सम्मानित कवयित्री रमा जी "
आभार चेतन रामकिशन जी
Delete