Tuesday, August 12, 2014

अब मैं चाँद हूँ


                           चाँद

         पूर्णिमा चाँद तो हर मास आता है
हर मास अमावस्या को हरा कर
सब के सामने आ ही जाता है
मेरी अमावस्या बहुत लंबी हो गयी
मेरा चाँद कहीं खो गया
न जाने कहाँ 
कौन से बादलों में 
गुम हो गया मेरा चाँद
बहुत ढूंढा तो पाया
अब वो मेरा नही
किसी और का चाँद बन गया
मैने अपनी अमावस्या को
अपनी हिम्मत से हरा दिया और
मैं खुद चाँद बन गई
अब कोई अमावस्या
कोई डर का बादल
मुझे नहीं हरा सकता
पहचाना नहीं न मुझे न 
पहले मैं छुपी रहती थी
डर के बादलों में
अब कोशिश कर रही हूँ
खुद को पहचानने की
इसी लिये डर के बादलों को
चीर दिया मैंने
हिम्मत से अपनी
अब चाँद का इंतजार नहीं
अब मैं खुद चाँद हूँ

4 comments:

  1. अब मै खुद चाँद हूँ ......बेहतरीन

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  2. इसी लिये डर के बादलों को
    चीर दिया मैंने
    हिम्मत से अपनी
    अब चाँद का इंतजार नहीं
    अब मैं खुद चाँद हूँ..

    अंतस में आत्मविश्वसा का अद्भुत संचार करती बेहद सुंदर प्रस्तुति।।

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