Wednesday, July 16, 2014

किसे भूलू, किसे याद करूं

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       रुकमनी को भूल गए 
बस राधे राधे याद रहा 
तू ही बता कान्हा 
किसे भूलूं किसे याद याद करू 
मेरे लिए तो 
दोनों ही पूजनीय हैं 
अगर तुझे कुछ अंतर पता है 
तो तू ही समझा 
किसे भूलू किसे याद करू 
मीरा का नाम भी 
याद है सब को 
मुझे रुकमनी का कोई कुसूर तो बता 
क्यों भूलें हैं सब उसे 
हक तो उसका है 
फिर उसी को ये सज़ा क्यों 
सब उसी को भूले 
बाकि सबकी सब को याद रही
सिर्फ रुकमनी को भूल गए सब 
मुझे रुकमनी ज्यादा याद आती है 
वो भी तन्हाई 
मेरी तरह सहती है 
फिर कैसे राधे राधे करू 
आज बता जा कान्हा 
ये दुविधा मेरी 
मिटा जा कान्हा 
रुकमनी की सज़ा 
मिटा जा कान्हा 
बस इतना बता जा 
क्यों रुकमनी भूलूं 
क्यों राधा याद करू 

4 comments:

  1. वाह वाह क्या कहने, बेहद लाजवाब और सुन्दर। हार्दिक बधाई। सादर नमन।

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  2. "
    मुझे रुकमनी का कोई कुसूर तो बता
    क्यों भूलें हैं सब उसे
    हक तो उसका है
    फिर उसी को ये सज़ा क्यों
    सब उसी को भूले
    बाकि सबकी सब को याद रही
    सिर्फ रुकमनी को भूल गए सब
    मुझे रुकमनी ज्यादा याद आती है
    वो भी तन्हाई
    मेरी तरह सहती है
    फिर कैसे राधे राधे करू
    आज बता जा कान्हा
    ये दुविधा मेरी
    मिटा जा कान्हा "

    अत्यंत प्रसंशनीय रचना,
    बहुत सुन्दर और श्री कृष्णा से सही जवाब,
    अगर रुक्मणी उनकी पत्नी थीं तो क्या पत्नी की उपेक्षा हमारा भारतीय समाज देता है, सुन्दर लिखा, सम्मानित कवयित्री रमा जी "

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