रुकमनी को भूल गए
बस राधे राधे याद रहा तू ही बता कान्हा
किसे भूलूं किसे याद याद करू
मेरे लिए तो
दोनों ही पूजनीय हैं
अगर तुझे कुछ अंतर पता है
तो तू ही समझा
किसे भूलू किसे याद करू
मीरा का नाम भी
याद है सब को
मुझे रुकमनी का कोई कुसूर तो बता
क्यों भूलें हैं सब उसे
हक तो उसका है
फिर उसी को ये सज़ा क्यों
सब उसी को भूले
बाकि सबकी सब को याद रही
सिर्फ रुकमनी को भूल गए सब
मुझे रुकमनी ज्यादा याद आती है
वो भी तन्हाई
मेरी तरह सहती है
फिर कैसे राधे राधे करू
आज बता जा कान्हा
ये दुविधा मेरी
मिटा जा कान्हा
रुकमनी की सज़ा
मिटा जा कान्हा
बस इतना बता जा
क्यों रुकमनी भूलूं
क्यों राधा याद करू
वाह वाह क्या कहने, बेहद लाजवाब और सुन्दर। हार्दिक बधाई। सादर नमन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार मनमोहन जी
Delete"
ReplyDeleteमुझे रुकमनी का कोई कुसूर तो बता
क्यों भूलें हैं सब उसे
हक तो उसका है
फिर उसी को ये सज़ा क्यों
सब उसी को भूले
बाकि सबकी सब को याद रही
सिर्फ रुकमनी को भूल गए सब
मुझे रुकमनी ज्यादा याद आती है
वो भी तन्हाई
मेरी तरह सहती है
फिर कैसे राधे राधे करू
आज बता जा कान्हा
ये दुविधा मेरी
मिटा जा कान्हा "
अत्यंत प्रसंशनीय रचना,
बहुत सुन्दर और श्री कृष्णा से सही जवाब,
अगर रुक्मणी उनकी पत्नी थीं तो क्या पत्नी की उपेक्षा हमारा भारतीय समाज देता है, सुन्दर लिखा, सम्मानित कवयित्री रमा जी "
आभार चेतन जी
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