ये कैसा सावन आया
पेड़ो को सुखा गया
कोई फुहार न आई
ज़मीन बंजर हो गयी अब तो
इक बार तो बरस जाते
शायद कुछ पत्ते हरे हो जाते
एक फुहार तो पड़ जाती
ज़मीन कुछ नरम ही हो जाती
कभी सोचा न था
कभी देखा भी न था
ऐसा सावन भी होता है
जो पेड़ो को सुखाता है
ज़मीन में दरारे डालता है
अगर सावन ऐसा है तो
मुझे कुछ और नही देखना है
nice
ReplyDeleteआभार नीलू
Deleteबहुत सुन्दर रचना .. बधाई आप को
ReplyDeleteहार्दिक आभार मीना
Deleteबहुत सुन्दर रचना .
ReplyDeleteआभार दर्शन जी
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeletewww.premkephool.blogspot.com
आभार दर्शन जी
Delete