Thursday, August 15, 2013

बचाओ




सोचा न था कभी इस माँ ने के उस के ही लाल उसे मार डालेंगे, कितने प्यार और दुलार भरी पुरवाईयों से, सींचा था जिन्हे वो ही एक दिन धर्म के नाम पर जाति के नाम पर उस के सीने में ही खंजर भौंक देंगे, कहाँ खबर थी इस बदनसीब माँ को की इस की अपनी ही बेटियाँ घर के कोने ढूंढेंगी छिपने के लिये, अपनी इज्जत बचाने के लिये, बेटियों को बचाती , बेटो को समझाती खुद ही मार डाली गई,
     उसे तो फिरंगियों से मुकित मिली थी तो सोचा था अब घर में अमन और चैन होगा लेकिन यहाँ तो सब ही उल्टा हो गया, तब तो बाहर वालों से खतरा रहता था बहू बेटियों को , अब तो खुद अपने ही घर में लुट रही हैं बेटियाँ , अब कैसे बचाउंगी उन्हे
      अपने ही जब अपनो के दुश्मन बन जायें तो घर घर कब रह जाता है, ये तो कैदखाना बन गया है
मुझे मेरे ही बेटों ने मार डाला,
समझ नही आ रहा कि ये आज़ादी अच्छी है या वो गुलामी अच्छी थी .आज सब आज़ादी का जश्न मना रहे है लेकिन मेरा बहता लहू कोई नही देख रहा, सिसक सिसक कर दम तोड़ रही हूँ.
कोई नही जो मुझे बचाये......

8 comments:

  1. Very moving, Rama ji. Ek ek aansu ka katra dikh raha hei es rachna me. Zindagi me aise bhi log milta hei, kabhi socha na tha. Aap ki kalam me jaadu hei, dard hei.....

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  2. sahi shabdon main sahi baat kah di..sakhi..

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  3. आज यह माँ जार जार रो रही है
    तभी तो आज अमिताब को यह बोलना पढ़ रहा है
    आज मेरा देश रो रहा है ...............

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  4. Rightly expressed a mothers ideas.
    Vinnie,
    Please visit my blog Unwarat.com & read its latest article Janmastmi in London.
    Vinnie

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