फूल
आज फूलो को भी पसीना आ गया
ऐसा क्या हुआ होगा
फूलो के ज़ज्बातो को कोई नहीं समझता
खुद ही रोते हैं और सुख जाने पर भी खुशबू देते हैं
और कोई ऐसा कर के दिखाए तो जाने
बस फूल ही हैं ऐसे जिन्हें चाहे पैरो तले कुचल दो
चाहे गुलदान में लगा दो या चाहे किताबों में सुखा दो
ये तो सदा खुशबु ही देंगे
गले में हार डाल दो या सेज पर सजा दो
ये बदनसीब तो अर्थी को भी खुशबु देते हैं
आज की दुनिया ने इंसान इंसान का गला कटता है
फूलो जैसा बनना तो दूर की बात है
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आज फूलो को भी पसीना आ गया
ReplyDeleteऐसा क्या हुआ होगा
फूलो के ज़ज्बातो को कोई नहीं समझता
खुद ही रोते हैं और सुख जाने पर भी खुबू देते हैं
शुभ प्रभात
इसको एडिट करें
खुबू को खुशबू करें
सादर
आभार यशोदा जी
Deleteआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (01-08-2013) को "ब्लॉग प्रसारण- 72" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteआज की दुनिया ने इंसान इंसान का गला कटता है
ReplyDeleteफूलो जैसा बनना तो दूर की बात है
बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति !
latest post,नेताजी कहीन है।
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
हार्दिक आभार
Deleteगुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं,काँटों से भी जीनत होती है.....
ReplyDeleteजीने के लिए इस दुनिया में गम की भी ज़रूरत होती है.....
फूल न सही काँटा ही बनो :-)
सुन्दर भाव रमा जी
अनु
वाह ,लाजवाब
Deleteहार्दिक आभार
Deleteफूलों का जवाब नही ,बिना शर्त खुसबू बाटंते फिरते हैं |
ReplyDeleteएक शाम संगम पर {नीति कथा -डॉ अजय }
हार्दिक आभार
Deleteभावपूर्ण प्रस्तुति रमा जी
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteसही जीवन दर्शन ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार
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