Saturday, May 25, 2013

अकेले से मेला

अकेला
अब कोई साथी नहीं

कोई राह नहीं

कोई मंजिल नहीं

एकदम तनहा हूँ

लेकिन गम नहीं

हिम्मत अब भी है

ताकत अब भी है

होंसला अब भी है

मिल जाएगी मंजिल भी

तनहा हूँ तो

कोई भटकानेवाला भी नहीं

बस चलना है

खुद रास्ता ढूँढना है

दुसरो को भी दिखाना है

अकेले से मेला बनाना है

 
 

24 comments:

  1. वाह रमा जी वाह बहुत ही सुन्दर चित्र को सुन्दरता से परिभाषित करने के साथ साथ सुन्दरता से प्रस्तुत भी किया है आपने, हार्दिक बधाई स्वीकारें.

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  2. Bahut hi achchi rachna.....Rama badhai aapko

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  3. शुभम
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (27-05-2013) के :चर्चा मंच 1257: पर ,अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
    सूचनार्थ |

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    1. आभार सरिता जी ,मै जरुर आउंगी

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  4. akele hain to kya gam hai .......bahut sundar

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  5. हिम्मत
    भी है अब
    और...
    अब भी है
    ताकत
    रह सकते हैं अकेले.....

    सुन्दर रचना

    सादर

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  6. आपकी यह रचना कल सोमवार (27 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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    1. धन्यवाद अरुण जी ,मै अवश्य आउंगी ...

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  7. Replies
    1. जब तक हौसला हो सब कुछ साथ है. सुन्दर रचना.

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  8. हौसला बना रहे मेला भी लग जाएगा ।

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  9. मेला तो लगेगा ही ..आपमें हौसला जो है ...सुंदर प्रस्तुति

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