ये दुनिया
जब से बयाही
यहीं खड़ी हूँ
इंतज़ार में
उन्हें फुर्सत नहीं
न मुजरे से
न शराब से
कुछ बोल नहीं सकती
पीट देते हैं
नशे में
घरवाले भी सब
उनका साथ देते हैं
क्यों
क्या मै कमज़ोर औरत हूँ
क्यों
क्या मेरा कोई नहीं
इसलिए
सब को अधिकार है
मनमानी का
अगर मै ऐसा करती तो
क्या मुझे
सब माफ़ होता
कब ख़तम होगा
ये
औरत और मर्द का
फर्क |
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
ReplyDeleteकई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
आभार संजय जी ....
Deleteइस फर्क को खत्म करने के लिए खुद का प्रयास भी जरोरी है .. तभी समाज आगे आता है ...
ReplyDeleteसही कहा आप ने दिगम्बर जी .....आभार
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