Saturday, April 13, 2013

फर्क

ये दुनिया

जब से बयाही

यहीं खड़ी  हूँ

इंतज़ार में

उन्हें फुर्सत नहीं

न मुजरे से

न शराब से

कुछ बोल नहीं सकती

पीट देते हैं

नशे में

घरवाले भी सब

उनका साथ देते हैं

क्यों

क्या मै कमज़ोर औरत हूँ

क्यों

क्या मेरा कोई नहीं

इसलिए

सब को अधिकार है

मनमानी का

अगर मै ऐसा करती तो

क्या मुझे

सब माफ़ होता

कब ख़तम होगा

ये

औरत और मर्द का

फर्क

4 comments:

  1. ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

    कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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  2. इस फर्क को खत्म करने के लिए खुद का प्रयास भी जरोरी है .. तभी समाज आगे आता है ...

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    1. सही कहा आप ने दिगम्बर जी .....आभार

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