Wednesday, March 27, 2013

निर्मल जल

वक़्त

मौसम बदल रहा है 

इंसान बदल गया है 

फूलो ने भी रंग बदल लिया है 

पत्ते भी झड गये हैं 

संस्कार बदल रहे हैं 

जब सब बदल रहे हैं तो 

मुझे भी बदलना है 

बहते पानी के साथ बहना है 

रुके हुए पानी में काई जम् जाती है 

मुझे काई नहीं बनना 

मुझे बहता निर्मल जल बनना है ......



6 comments:

  1. ....प्रशंसनीय रचना - बधाई

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  2. ऽऽ जब सब बदल रहे हैं
    तो मुझे भी बदलना है।
    आज के युग की जरूरी लाइन , बधाई

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