वक़्त
मौसम बदल रहा है
इंसान बदल गया है
फूलो ने भी रंग बदल लिया है
पत्ते भी झड गये हैं
संस्कार बदल रहे हैं
जब सब बदल रहे हैं तो
मुझे भी बदलना है
बहते पानी के साथ बहना है
रुके हुए पानी में काई जम् जाती है
मुझे काई नहीं बनना
मुझे बहता निर्मल जल बनना है ......
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....प्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeleteआभार संजय जी
Deleteबधाई...WAAH!!!!
ReplyDeleteआभार मनोहर जी
Deleteऽऽ जब सब बदल रहे हैं
ReplyDeleteतो मुझे भी बदलना है।
आज के युग की जरूरी लाइन , बधाई
आभार माथुर जी
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