होली
काश वो होली फिर से होती
कुछ सखियाँ होती
कुछ गुबारे होते लडको के हाथ
सब डरती हुई झांकती सी
निकलती गली में
फिर भी कहीं से गुब्बारा आ ही जाता
चरों और गुस्से से देखो
कोई नज़र नहीं आता
बस हंसी ही सुनाई देती
और होली वाले दिन तो
कौन सुनता था माँ पापा की
सड़क से कोई सुखा निकले कैसे
गुब्बारे ख़तम तो
बाल्टी से पानी शुरू
बाल्टी ख़तम तो
हन्द्पम्प के नीचे ही घसीट देते थे
बेचारे को
क्या हमारे बच्चे ऐसी होली की कल्पना भी कर सकते हैं .....रमा .....होली मुबारक
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फिर भी कहीं से गुब्बारा आ ही जाता
ReplyDeleteसादर
आभार यशोदा जी .....सही कहा आप ने
DeleteYou have captured the spirit of Holi in a very colourful way. Thank you for sharing your words with me. Happy Holi!
ReplyDeleteThank you very much sham ji
Deleteबहुत सुंदर रचना सखी .......होली मुबारक
ReplyDeleteआभार उपासना सखी ...
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