Tuesday, March 26, 2013

होली

होली


काश वो होली फिर से होती 

कुछ सखियाँ होती 

कुछ गुबारे होते लडको के हाथ 

सब डरती हुई झांकती सी 

निकलती गली में 

फिर भी कहीं से गुब्बारा आ ही जाता 

चरों और गुस्से से देखो 

कोई नज़र नहीं आता

बस हंसी ही सुनाई देती 

और होली वाले दिन तो 

कौन सुनता था माँ पापा की 

सड़क से कोई सुखा निकले कैसे 

गुब्बारे ख़तम तो 

बाल्टी से पानी शुरू 

बाल्टी ख़तम तो 

हन्द्पम्प के नीचे ही घसीट देते थे
 
बेचारे को 

क्या हमारे बच्चे ऐसी होली की कल्पना भी कर सकते हैं .....रमा .....होली मुबारक





 

6 comments:

  1. फिर भी कहीं से गुब्बारा आ ही जाता
    सादर

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    1. आभार यशोदा जी .....सही कहा आप ने

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  2. You have captured the spirit of Holi in a very colourful way. Thank you for sharing your words with me. Happy Holi!

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  3. बहुत सुंदर रचना सखी .......होली मुबारक

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