Sunday, October 28, 2012

साया

साया

आज सड़क पर देखा
एक अकेला साया
चला जा रहा था
चुप चाप
अपने में खोया सा
मैंने धयान से देखा
कुछ जाना पहचाना सा लगा
कुछ उदास सा
अपने में गुम
बस चला जा रहा था
मै कुछ आगे बड़ी
वो भी आगे बड गया
मै कुछ तेज़ चली
उसकी चाल भी तेज़ हो गयी
मै पीछे दौड़ी
वो भी भागने लगा
धीरे धीरे पास गयी
वो भी धीरे हो गया
पास जाकर देखा
अरे ये तो !!
मेरा साया है
एकदम तनहा सा
चुप चाप
बस चला जा रहा था
मै भी
चुप चाप
उसके साथ चल पड़ी
लेकिन ये क्या
उसने मुड़कर भी नहीं देखा
कुछ बोला भी नहीं
बस उसी तरह
चुप चाप चलता रहा
मेरे आंसू निकल आये
कुछ समझ नहीं आया
की क्या करूं
कैसे इसका साथ दूं
तभी
एक रौशनी की किरण सी आई
और वो साया
मुझमे में समां गया
और अब मै
उसी की तरह  तनहा हो गयी 

6 comments:

  1. उत्कृष्ट अभिव्यक्ति... सभी पंक्तियाँ बहुत शानदार हैं!!

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  2. Very moving, Rama ji. Every word you write has a very deep meaning. Very well written as always. You and i should write a book together....

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