Monday, June 11, 2012

बिसात

जिंदगी की बिसात बिछी थी
हम ने जान की बाज़ी लगा दी
तुम्हारे बिना  कुछ याद न आया
तुम्हारी ही याद में जिए हम
तुम्हारे लिए अपनी जान गँवा दी
तुम क्या जानो प्यार  है क्या
हम तो रस्मे उल्फत निभा दी 

4 comments:

  1. अति सुन्दर लिखा है..!!!

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    1. हार्दिक आभार संजय जी .....आप का ....

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  2. This comment has been removed by the author.

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    1. आभार आप का ब्लॉग पर आने का ..

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