Monday, June 11, 2012

सुबह



इक सुबह और आ गयी 
तेरे इंतज़ार की 
किरणे फिर चमक उठी 
उदास रात के इंतज़ार को 
फूल भी खिल गये
फिर मुरझाने के लिए 
पंछी चहचाहट लिए आए 
तुम्हे देखने के लिए 
कब आओगे 
इंतज़ार है उस सुबह का 
सब को 

4 comments:

  1. उत्‍कृष्‍ट लेखन ... आभार

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    1. आपका बलाग पर आना और सराहना... हार्दिक आभार

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  2. आपकी कविता मन के संवेदनशील तारों को झंकत कर गयी । प्रशंसनीय ।

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