Sunday, May 20, 2012

घूँघट

घूँघट से झांकती 
दो कजरारी 
बेकरार अखियाँ 
घूँघट नज़र आती 
दो खामोश 
होटों की उदासी
घूँघट से दिखती 
दर्द से व्याकुल 
एक प्यारी 
घूँघट नहीं ये 
आवरण है 
तुम्हारी उदासी का 
प्यारा है ये 
घूँघट मुझे बहुत 
क्योकि छुपाता है 
सब की नजरो से 
तुम्हे 
इस घूँघट की उदासी 
समझता हूँ 
तुम भी समझो 
मेरी नजरो को 
इनमे घूँघट है 
मुस्कराहट का 
तुम्हारा घूँघट 
दिखता है 
मेरी दिखती है 
मुस्कराहट 
समझो मेरे घूँघट को 
आ जाऊंगा 
बस थोडा सा 
इंतज़ार करना 
अपने घूँघट से 
इस तरह न मुझे 
बेकरार करना 
संभाल कर रखना 
ये प्यार का 
घूँघट तुम 
जल्दी आऊंगा 
हटाने को 
ये प्यारा घूँघट 
तुम्हारा ........

17 comments:

  1. Bahut sunder rachna ..Ramaajay ji

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    1. धन्यवाद मंजुल सखी .....आप के ब्लॉग पर आने का और पसंद करने का .....आभार

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  2. kya baat ........shikayt aur manuhar ek sath........bahut sundar

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    1. धन्यवाद उपासना सखी .....बहुत सुंदर और सटीक टिप्पणी ....

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  3. सुन्दर भावनाओं का मिश्रण ,,, बहुत खूब रमा जी

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रवीना सखी ....

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  4. बहुत सुन्दर भावमयी रचना...

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  5. प्रेम के प्रति आपकी बेहतरीन सोंच इस सुन्दर-सी कविता में प्रतिबिंबित हो रही है.
    वाह.

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