घूँघट से झांकती
दो कजरारी
बेकरार अखियाँ
घूँघट नज़र आती
दो खामोश
होटों की उदासी
घूँघट से दिखती
दर्द से व्याकुल
एक प्यारी
घूँघट नहीं ये
आवरण है
तुम्हारी उदासी का
प्यारा है ये
घूँघट मुझे बहुत
क्योकि छुपाता है
सब की नजरो से
तुम्हे
इस घूँघट की उदासी
समझता हूँ
तुम भी समझो
मेरी नजरो को
इनमे घूँघट है
मुस्कराहट का
तुम्हारा घूँघट
दिखता है
मेरी दिखती है
मुस्कराहट
समझो मेरे घूँघट को
आ जाऊंगा
बस थोडा सा
इंतज़ार करना
अपने घूँघट से
इस तरह न मुझे
बेकरार करना
संभाल कर रखना
ये प्यार का
घूँघट तुम
जल्दी आऊंगा
हटाने को
ये प्यारा घूँघट
तुम्हारा ........
दो कजरारी
बेकरार अखियाँ
घूँघट नज़र आती
दो खामोश
होटों की उदासी
घूँघट से दिखती
दर्द से व्याकुल
एक प्यारी
घूँघट नहीं ये
आवरण है
तुम्हारी उदासी का
प्यारा है ये
घूँघट मुझे बहुत
क्योकि छुपाता है
सब की नजरो से
तुम्हे
इस घूँघट की उदासी
समझता हूँ
तुम भी समझो
मेरी नजरो को
इनमे घूँघट है
मुस्कराहट का
तुम्हारा घूँघट
दिखता है
मेरी दिखती है
मुस्कराहट
समझो मेरे घूँघट को
आ जाऊंगा
बस थोडा सा
इंतज़ार करना
अपने घूँघट से
इस तरह न मुझे
बेकरार करना
संभाल कर रखना
ये प्यार का
घूँघट तुम
जल्दी आऊंगा
हटाने को
ये प्यारा घूँघट
तुम्हारा ........
Bahut sunder rachna ..Ramaajay ji
ReplyDeleteधन्यवाद मंजुल सखी .....आप के ब्लॉग पर आने का और पसंद करने का .....आभार
Deletekya baat ........shikayt aur manuhar ek sath........bahut sundar
ReplyDeleteधन्यवाद उपासना सखी .....बहुत सुंदर और सटीक टिप्पणी ....
Deleteसुन्दर भावनाओं का मिश्रण ,,, बहुत खूब रमा जी
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद प्रवीना सखी ....
Deletesundar ati sundar
ReplyDeleteबहुत सा प्यार अनु
Deletevery sweet
ReplyDeleteधन्यवाद आरती जी
Deletebhavpoorn rachana
ReplyDeleteधन्यवाद अनु
Deleteबहुत सुन्दर भावमयी रचना...
ReplyDeleteधन्यवाद कैलाश जी
Deleteप्रेम के प्रति आपकी बेहतरीन सोंच इस सुन्दर-सी कविता में प्रतिबिंबित हो रही है.
ReplyDeleteवाह.
आभार संजय जी ...
Deleteबहुत ही शानदार
ReplyDelete