Friday, July 17, 2015

जाता यौवन


     

    आईना देखा जब आज तो
सिहर उठी सफेद बाल देख
लगता है समय आ गया
यौवन के जाने का
तैयार खड़ा है बुढ़ापा
जीवन में आने को
कैसे और कब बीता यौवन
न जान सकी मैं
खोई रही सदा घर में
कभी समय न निकाला खुद के लिये
अब जाते यौवन को लौटा नही सकती
गुज़री जिंदगी फिर से सुहानी बना नही सकती
स्वागत है बुढ़ापे तेरा भी
जैसा भी है तू
साथी है अंत तक का
नही देता तू धोखा चार दिन में
यौवन की तरह
यही तेरी बात भाती है मुझे
क्या करना ऐसे साथी का
जो छोड़ दे साथ चार दिन में
साथी ऐसा हो जो 
साथ निभाये अंतिम सांस तक
ऐसे यौवन से बुढ़ापा भला
सब देखंगे सम्मान से
नही बचना पड़ेगा गंदी निगाहो के अपमान से

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना पांच लिंकों का आनन्द में रविवार 19 जुलाई 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. हार्दिक आभार यशोदा जी

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