Thursday, February 19, 2015

निश्छल बचपन

बचपन

पेड़ों की ठंडी छांव में खेलना

अब एक सपना बन कर रह गया

वो छत  पर बैठना
 
वो बतियाना
मूंगफली के छिल्को का ढेर
सब सपना बन कर रह गया
तब कहाँ भाती थी सफाई की बाते
अब सिर्फ सलीका ही बचा रह गया
वो प्यारा निश्छल बचपन
इक सपना बन कर रह गया

5 comments:

  1. Aapne achchha likha hai,anyatha n len, Hindi me "bindiyan" kahan-kahan lagti hain, is par bhi dhyan den.

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    1. आभार प्रबोध जी ....आगे से पूरा ख्याल रहेगा

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  2. हार्दिक आभार .....राजेंदर जी

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