पेड़ों की ठंडी छांव में खेलना अब एक सपना बन कर रह गया वो छत पर बैठना वो बतियाना मूंगफली के छिल्को का ढेर सब सपना बन कर रह गया तब कहाँ भाती थी सफाई की बाते अब सिर्फ सलीका ही बचा रह गया वो प्यारा निश्छल बचपन इक सपना बन कर रह गया
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (20.02.2015) को "धैर्य प्रशंसा" (चर्चा अंक-1895)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (20.02.2015) को "धैर्य प्रशंसा" (चर्चा अंक-1895)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteहार्दिक आभार .....राजेंदर जी
DeleteAapne achchha likha hai,anyatha n len, Hindi me "bindiyan" kahan-kahan lagti hain, is par bhi dhyan den.
ReplyDeleteआभार प्रबोध जी ....आगे से पूरा ख्याल रहेगा
Deleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteहार्दिक आभार प्रतिभा जी
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