नया युग
कई कई युग बीत जातें है इक नए युग की तलाश में ,नया युग जिसमे सभी पुरातन पंथी रूदीयों से मुक्ति मिले ,लड़कियों को शिक्षा और दहेज़ जैसे दानव से मुक्ति ,लेकिन कब आएगा ये नया युग ,इस युग के इंतज़ार में कई युग बीत गए ,जब भी सोचा की युग बदल रहा है ,सिर्फ नज़रों का धोखा निकला ,पुराना युग पुराने रीति रिवाज़ ही नए युग का मुखौटा ओड कर सामने आ गए
कहीं भी कुछ ना बदला ,बस आँखों का धोखा ही निकला ,लड़कियों को वो ही सब सहना पड़ रहा है गाँव में ,शारीरक व् मानसिक शोषण ,कभी घर में कभी घर से बहार ,बोल तक नहीं पाती वो ,पदाई के नाम पर शोषण ,मजदूरी के नाम पर शोषण ,सब से गंभीर बात ये की माँ बाप भी इसे छोटी मोटी बात कह कर दबा देते हैं ,लड़की को मूंह खोलने से मना कर दिया जाता है !शहर में कुछ बातें प्रकट हो जाती हैं लेकिन ज्यादातर दबा ही दी जाती हैं ,शादी ब्याह में दहेज़ का रूप बदल कर नए नए शगुन बना दिए गएँ हैं ,लड़की चाहे जितनी पड़ लिख जाए कहीं ना कहीं उसे इन सभी समस्याओं का सामना ज़रूर करना पड़ता है ,बस में छेड़खानी ,शाम के समय घर से निकलते हुए भी भय का सामना ,
बच्चों की शिक्षा की वयवस्था शहरों में ज़रूर बदली है लेकिन वो भी प्राइवेट सकूलो में ,बच्चे वैसे पत्थर सा भारी बस्ता उठाये कभी स्कूल, कभी टिउशन घुमते नज़र आते हैं ,पैसेवालों के बच्चे पड़ लिख कर बाप दादा का बिजनस संभाल लेते हैं और गरीबों के बच्चे नौकरी के लिए ठोकरे खाते समझौते करते ही नज़र आते हैं
नारी घर से निकल कर दफ्तर में आ गयी है लेकिन दोहरे बोझ से दब कर रह गयी है ,थकान के कारन घर के काम में त्रुटियाँ होती है और दफ्तर में बॉस से डांट,सहकर्मियों की तिर्च्छी नजरो के वार
कहाँ बदल है युग ,और कब बदलेगा
क्या युग बदलने के इंतज़ार में सब यूँ ही घुट घुट कर जीते रहेंगे |
आपकी लिखी रचना शनिवार 29 नवम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार यशोदा जी
Deleteबहुत सुन्दर रमा जी ..वास्तविकता है आप की रचना में ...ना जाने ये युग कब बदलेगा ..शुभकामनाएँ
ReplyDeleteहार्दिक आभार मोहन जी ...ब्लॉग पर पधारने के लिए आभार
Deleteबदला है बहुत कुछ लेकिन अभी बहुत कुछ बदलाव बहुत जरुरी है ...
ReplyDeleteयह सही बात कही आपने कि दोहरी तेहरी भूमिका नारी को ही निभानी पड़ती है ....जब तक नारी अपने को अबला समझती रहेगी अत्याचार सहती रहेगी कोई नहीं सुनने वाला उसे अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी होगी ..पहल करनी होगी ..फिर सभी साथ देते नज़र आयेगें ..
सार्थक चिंतनशील प्रस्तुति
आभार कविता जी
Delete