Sunday, August 10, 2014

रक्षाबंधन और परदेसी बहन

भाई
 
राखी का त्यौहार
और मन में उदासी
कैसी है ये बेबसी
चाह कर भी
खुश कैसे होऊं
लाखो मील दूर हूँ ...
दिल लेकिन
आज माँ के घर में
ध्यान हर पल वहीँ का
बचपन घूमता है
आँखों में
दिल सोचता है
क्या वहां भी
यही हाल होगा
क्या मुझे याद करते होंगे
भाई की कलाई सूनी होगी
या की फेसबुक मित्र ने
मेरी कमी दूर कर दी होगी
दिल से दुआएं निकलती हैं
आँखों से आंसू
दम घुटता है
कहना आसन है
लेकिन
परदेस में रहना
बहुत कठिन
जुग जुग जियो मेरे वीर

8 comments:

  1. Replies
    1. हार्दिक आभार डॉ संध्या जी

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  2. bas jeunde vasde raho jithe vi ravo
    Tati va na lage mere veer nu
    Bhaina di ehi dua

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    1. थैंक्स आशा ...सदा दोना दा वीर

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  3. बहु्त मार्मिक कविता है रमा जी । दिल को छू गया हर शब्द !!

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  4. बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...दिल को छूते अहसास...

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