जोगन बनी तेरे प्यार में
थकी उँगलियाँ
टूटी उम्मीदें
मोहन नज़र ना आया
बीना भी उदास हुई
सुर भी बेसुरे हो गए
मोहन नज़र ना आया
पुकार पुकार थकी
मीरा अब
मोहन नज़र ना आया
मेरी बीना का हर तार
मेरी हर सांस की हर पुकार
सिर्फ मोहन के लिए
पर
मोहन नज़र ना आया
सारी दुनिया भूली
खुद को भूली
मोहन नज़र न आया
विष के प्याले पिए
खुद के लिए नहीं
बस तेरे ही नाम के
मोहन नज़र ना आया
थक गयी
हार गयी
दुनिया का हर सवाल
सहार गयी
मोहन नज़र न आया
कैसे करू वंदना
सिखा जा मुझे
कसे पुकारू तुझे
बता जा मुझे
आखियाँ तरस गयी
इक बार दरस दिखा जा मुझे
तेरी ही दीवानी हु
तेरी ही कहानी हु
सुन ले पुकार
किस से कहू
कैसे सहूँ
मोहन नज़र ना आया
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : पंचतंत्र बनाम ईसप की कथाएँ
नई पोस्ट : स्वप्न सुनहरे
आभार राजीव जी
Deleteमोहन की प्रतीक्षा की उसकी ही माया है ...
ReplyDeleteअच्छी रचना ...
आभार दिगम्बर जी
DeleteThanks Bete
ReplyDeleteमोहन से मिलन की चाह बनी रहे तो वह कभी तो सुधि लेगा....बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteहार्दिक आभार कैलाश जी ...ब्लॉग पर आने का शुक्रिया
Deleteबड़े ही नाज़ुक से तार छेड़ गयी आपकी अभिव्यक्ति .......
ReplyDeleteहार्दिक आभार संजय जी ..ब्लॉग पर आने का शुक्रिया
Deleteवियोग के भाव को बहुत अच्छी तरह से सजाया है आपने माँ।
ReplyDeleteबहुत मार्मिक रचना आपकी।
जय श्री कृष्णा
aabhar abhi bete
Deleteइक बार दरस दिखा जा मुझे
ReplyDeleteतेरी ही दीवानी हु
तेरी ही कहानी हु
सुन ले पुकार
किस से कहू
कैसे सहूँ
मोहन नज़र ना आया
.................................स्वार्थ व् शर्ते की सीमाओं से परे प्रेम के सूक्ष्मतम भावों से पिरोई हुयी शब्दातीत भाव की अनुगुंजन लिए प्रीत का पावन पनघट आपकी काव्य नदी .आत्मिक स्नान कर रोम रोम पुलकित हो जाए,प्रेम भूमि भारत के दार्शनिक व् आध्यात्मिक पुट का अद्भुत बिम्बं .....कालजयी कृति ....माँ ...नमन ...थिरकती मधुर तान पर फिर से कोई ये लेखनी मीरा सी बिलकुल दीवानी लगे है ...ज्यों राधा के बिना श्याम हो आधा त्यों आपकी लेखनी बिन ह्रदय का भाव हो आधा .जय श्री राधा .....वन्दे मातरम् ,जय भारत
आभार
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