Wednesday, March 5, 2014

मोहन

 
जोगन बनी तेरे प्यार में
 
थकी उँगलियाँ
 
टूटी उम्मीदें
 
मोहन नज़र ना आया
 
बीना भी उदास हुई
 
सुर भी बेसुरे हो गए
 
मोहन नज़र ना आया
 
पुकार पुकार थकी
 
मीरा अब
 
मोहन नज़र ना आया
 
मेरी बीना का हर तार
 
मेरी हर सांस की हर पुकार
 
सिर्फ मोहन के लिए
 
पर
 
मोहन नज़र ना आया
 
सारी दुनिया भूली
 
खुद को भूली
 
मोहन नज़र न आया
 
विष के प्याले पिए
 
खुद के लिए नहीं
 
बस तेरे ही नाम के
 
मोहन नज़र ना आया
 
थक गयी
 
हार गयी
 
दुनिया का हर सवाल
 
सहार गयी
 
मोहन नज़र न आया
 
कैसे करू वंदना
 
सिखा जा मुझे
 
कसे पुकारू तुझे
 
बता जा मुझे
 
आखियाँ तरस गयी
 
इक बार दरस दिखा जा मुझे
 
तेरी ही दीवानी हु
 
तेरी ही कहानी हु
 
सुन ले पुकार
 
किस से कहू
 
कैसे सहूँ
 
मोहन नज़र ना आया  

13 comments:

  1. मोहन की प्रतीक्षा की उसकी ही माया है ...
    अच्छी रचना ...

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  2. मोहन से मिलन की चाह बनी रहे तो वह कभी तो सुधि लेगा....बहुत सुन्दर रचना...

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    1. हार्दिक आभार कैलाश जी ...ब्लॉग पर आने का शुक्रिया

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  3. बड़े ही नाज़ुक से तार छेड़ गयी आपकी अभिव्यक्ति .......

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    1. हार्दिक आभार संजय जी ..ब्लॉग पर आने का शुक्रिया

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  4. वियोग के भाव को बहुत अच्छी तरह से सजाया है आपने माँ।
    बहुत मार्मिक रचना आपकी।
    जय श्री कृष्णा

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  5. इक बार दरस दिखा जा मुझे

    तेरी ही दीवानी हु

    तेरी ही कहानी हु

    सुन ले पुकार

    किस से कहू

    कैसे सहूँ

    मोहन नज़र ना आया
    .................................स्वार्थ व् शर्ते की सीमाओं से परे प्रेम के सूक्ष्मतम भावों से पिरोई हुयी शब्दातीत भाव की अनुगुंजन लिए प्रीत का पावन पनघट आपकी काव्य नदी .आत्मिक स्नान कर रोम रोम पुलकित हो जाए,प्रेम भूमि भारत के दार्शनिक व् आध्यात्मिक पुट का अद्भुत बिम्बं .....कालजयी कृति ....माँ ...नमन ...थिरकती मधुर तान पर फिर से कोई ये लेखनी मीरा सी बिलकुल दीवानी लगे है ...ज्यों राधा के बिना श्याम हो आधा त्यों आपकी लेखनी बिन ह्रदय का भाव हो आधा .जय श्री राधा .....वन्दे मातरम् ,जय भारत

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