Wednesday, February 26, 2014

पुस्तक मेला




सभी दोस्त व्यस्त थे पुस्तक मेले में ,

 हम परदेसी तस्वीरो से दिल बहला रहे हैं अब तक

किसी को याद न आई होगी उस वक्त हमारी

जब हम उन्हे याद करके अकेले में आंसू बहा रहे थे

बहुत चाहा था रूकना पुस्तक मेले तक

लेकिन बेमुरव्वत वक्त ने कब किसी की पुकार सुनी है

बेमन से लौट आये अपने देस(परदेस) में

अब रोज़ अकेले बैठे सब की पुस्तकों की बाट जोह रहे हैं

न मिली अभी तक कोई पुस्तक ,न मिला संदेस ही कोई

हमने न जाने कितनी बार सब की याद में पलकें भिगोईं

5 comments:

  1. bahut marmik hai rama jo tum mahsus karti ho mujhe vah mahsus hota hai sakhi ... tumhe maine chatboxme kayi msg diye hain .. jaane tumne unko kaise nahi dekha ......

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    1. मैं आपसे क्षमा चाहती हूँ , अभी सारे मैसेज देखती हूँ ....

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