Friday, December 21, 2012

बिटिया की चिंता

जिंदगी

फूलों में खेलती

सपनो को संजोती

बड़ी हो गयी बिटिया

बाहर कैसे भेजूं

नादान है बहुत

कांच जैसी

मेरी नाज़ुक बिटिया

बाहर हर कोने में

छिपे शैतान हैं

मुखोटे ओडे खड़े

बेईमान हैं

कहीं किसी ने देख लिया तो

नज़र लगा दी

मेरी राजकुमारी को तो

कैसे समझाउं इसे

ये तो बहुत नादान है

हर भेडिये से बेखबर

अनजान है

क्या समझाऊं इसे

दिल टूट न जाए इसका

सपने

बिखर न जाएँ इसके

बहुत भोली

दुनिया से अनजान है

चिंता खाए जाती है

बिटिया क्यों बड़ी हो जाती है

छोटी थी तो अच्छा था

घर में खेलती थी

अब बहार कैसे भेजू

हर कोने में छिपे शैतान हैं


 

4 comments:

  1. Rama sahi likha hai beti badi hoti hai to ye hi chinta sab se pahle hoti hai

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    1. सही कहा आप ने शांति जी लेकिन क्या हम अपने बच्चों को एक साफ़ सुथरा समाज नहीं दे सकते

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  2. सच में बेटी की चिंता तो रहती ही है ......बहुत सुन्दर

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