Tuesday, July 24, 2012

कैसा जमाना है

उदासी

सारी  रात गुज़ार दी आँखों में

कैसा जमाना है आज का

न दिल समझ पाता है कुछ

न दिमाग काम करता है

दुनिया का चलन समझ नहीं आता है

जुबां तो खामोश है मगर

दिल हाहाकार कर रहा है

कोई अपना नज़र नहीं आता

हर कोई प्यार में मतलब छिपाए फिरता है

किस पर विश्वास करे अब

जब अपना खून ही खून बहाता है

नाम मज़हब का लेते हैं

मकसद अपना पूरा  करते हैं

इंसान कोई बचा नहीं अब

हैवानो  की भीड़ में जिया जाता नहीं अब


4 comments:

  1. बहुत मार्मिक व्यथा है सखी .....पर एक ईश्वर तो है जो हमारा सच्चा सहारा है

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    1. सही कहा उपासना सखी ......आभार ....

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