कभी विश्वास को दगा न करना दोस्तों
प्यार न कर सको न करना तुम
लेकिन घात न कभी करना दोस्तों
सच्चे दोस्त भी मिलते हैं तकदीर से
न पहचान सको तो कोई बात नहीं
कलयुग का दौर है ये तो
सच को पहचानने की नज़रे अब कहाँ है
सब की आँखों पर धोखे का चश्मा लगा है
इस चश्मे को उतार कर देखो कभी
बहुत धोखे दे दिए तुमने सब को
एक बार तो विश्वास की लाज रख लो दोस्तों
प्यार न कर सको न करना तुम
लेकिन घात न कभी करना दोस्तों
सच्चे दोस्त भी मिलते हैं तकदीर से
न पहचान सको तो कोई बात नहीं
कलयुग का दौर है ये तो
सच को पहचानने की नज़रे अब कहाँ है
सब की आँखों पर धोखे का चश्मा लगा है
इस चश्मे को उतार कर देखो कभी
बहुत धोखे दे दिए तुमने सब को
एक बार तो विश्वास की लाज रख लो दोस्तों
बहुत धोखे दे दिए तुमने सबको
ReplyDeleteएक बार तो विश्वास की लाज रख लो दोस्तों ..!!!
सुन्दर रचना और आपका ब्लॉग सखी !!!
हार्दिक धय्न्य्वाद शोभा सखी .....आप का ब्लॉग पर आना और सरहाना
Deleteवाह ...क्या बात कही है
ReplyDeletebahut sahi kaha aapne sakhi........
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