इक घर
पांच उँगलियाँ एक सामान नहीं होती
सातो रंग एक जैसे नहीं होते
सातो सुर भी अलग धुन देते हैं
किसी से किसी की कोई बराबरी नहीं
मगर
पांच उँगलियाँ मिले तो
इक मुट्ठी बन जाती है
सातो रंग मिले तो
इन्द्रधनुष बन जाता है
सातो सुर मिल जाएँ तो
सरगम पूरी हो जाती है
मगर
दो दिल मिल जाएँ तो
इक सुंदर घर बन जाता है
bahut sahi kaha do dil milte hain tabhi ek sundar ghar ka nirmaan hota hai .......
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ...उपासना सखी .....आप ने सदा मुझे प्रोत्साहन दिया है .....आभार
Deleteबहुत सार्थक बात रमा - यही तो "घर" और "मकान" का अंतर है - और आज की भागती हुई जिन्दगी में "घर" कम हो रहे हैं और "मकान" बढ़ते जा रहे हैं -
ReplyDeleteआभार श्यामल भाई .....
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