कही है छावं तो कही
खिली हुई धुप की लाली
कहीं तो हैं बंजर
कही मुस्काए हरियाली
दूर से देखो तो अच्छी लगे
करीब से देखो तो मन में
सुकून दिलाये इसकी छवि निराली
कही हैं शीतल धारा तो
कहीं शोर मचाये झरने
कहीं कोयल कूके तो
कहीं शोर मचाये चिड़िया
पत्तो की आवाज़ भी है
हवाओ की सनसनाहट भी है
पदों से छनती धुप है कहीं
और कहीं डराए अँधेरे
कोई आये यहाँ तो फिर
जाने न दे उसे ये
प्रकृति की छवि निराली
Ati sunder ...ek ek sabdh m nature ke gungaan jo hum mahsus karte hai .....wah Ramaajay ji
ReplyDeleteधन्यवाद मंजू जी ....
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteमन को शांति प्रदान करने वाली कविता
धन्यवाद मुकेश जी
Deleteप्रकृति की हर छवि निराली.......bahut hi sundar aur man-mohak
ReplyDeleteधन्यवाद उपासना सखी
Deleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..आभार
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