Saturday, May 12, 2012

प्रकृति की छटा

प्रकृति की हर छवि निराली
कही है छावं तो कही
खिली हुई धुप की लाली
कहीं तो हैं बंजर
कही मुस्काए हरियाली
दूर से देखो तो अच्छी लगे
करीब से देखो तो मन में
सुकून दिलाये इसकी छवि निराली
कही हैं शीतल धारा तो
कहीं शोर मचाये झरने
कहीं कोयल कूके तो
कहीं शोर मचाये चिड़िया
पत्तो की आवाज़ भी है
हवाओ की सनसनाहट भी है
पदों से छनती धुप है कहीं
और कहीं डराए अँधेरे
कोई आये यहाँ तो फिर
जाने न दे उसे ये
प्रकृति की छवि निराली

7 comments:

  1. Ati sunder ...ek ek sabdh m nature ke gungaan jo hum mahsus karte hai .....wah Ramaajay ji

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  2. बहुत सुंदर
    मन को शांति प्रदान करने वाली कविता

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  3. प्रकृति की हर छवि निराली.......bahut hi sundar aur man-mohak

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  4. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..आभार

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