Saturday, May 12, 2012

अकेला पंछी



ठण्ड और बर्फ 
सुनसान वादियाँ 
अकेला बैठा मै
कोई और पंछी नहीं 
किसी की आवाज़ भी नहीं 
भूका बैठा हूँ 
किसी को मेरी 
तलाश भी नहीं 
सब छुप कर बेठे हैं 
अपने अपने घोंसले में 
मेरा तो कोई घोंसला भी नहीं 
सब ख़तम हो गया 
ये कैसा मौसम आया है 
इस बारे में तो कभी सोचा न था 
कौन सुनेगा  आवाज़ मेरी 
कौन खिलायेगा मुझको दाना 
अभी रात हो जाएगी 
मै भी इसी बर्फ में 
इन पत्तो की भांति ही 
चुप सो जाऊंगा या मर जाऊंगा 
किसी को खबर न होगी मेरी 
सब यूँ ही चलता रहेगा 
जब बर्फ हटेगी तो शायद 
कोई देखे मुझे 

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