ठण्ड और बर्फ
सुनसान वादियाँ
अकेला बैठा मै
कोई और पंछी नहीं
किसी की आवाज़ भी नहीं
भूका बैठा हूँ
किसी को मेरी
तलाश भी नहीं
सब छुप कर बेठे हैं
अपने अपने घोंसले में
मेरा तो कोई घोंसला भी नहीं
सब ख़तम हो गया
ये कैसा मौसम आया है
इस बारे में तो कभी सोचा न था
कौन सुनेगा आवाज़ मेरी
कौन खिलायेगा मुझको दाना
अभी रात हो जाएगी
मै भी इसी बर्फ में
इन पत्तो की भांति ही
चुप सो जाऊंगा या मर जाऊंगा
किसी को खबर न होगी मेरी
सब यूँ ही चलता रहेगा
जब बर्फ हटेगी तो शायद
कोई देखे मुझे
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