काश मैने भी वो ही किया होता ,अरे वोही जो आजकल सब करते हैं लड़के भी और लडकिय भी ....प्यार....सुना -है बढ़ा मज़ा आता है इस मे, प्रेमी मनपसंद चीज़े दिलवाता है, चाट पकौड़ी जो कहो हाजिर करता है, हाय हाय मेरी तो मति मारी गई थी जो बस किताबो में घुसी रही, जरा आसपास देखा होता , कुछ अक्ल का इसतमाल किया होता तो आज चार औरतो में मुँह छिपा कर नही बैठना पड़ता, कैसे चटखारे ले लेकर सब बाते बताती हैं अपनी अपनी रस भरी बातें .. , एक मैं ही बगलें झांकती हूँ उस समय....
अब रोवो बैठ कर अपनी अकल को, जो पढ़ाई के सिवा कहीं चलती ही नही थी, सच कहूं अब कौन सी चलती है वरना ऐसे ही कोई कहानी न बना लेती, अब तो पप्पू के पापा को भी नही कोस सकती कि हाय हाय उस वक्त मैने अक्ल का इसतेमाल क्यो न किया वरना वो तो मुझे रानी बना कर रखता ,जब ऐसा कहती तो कैसे जलभुन जाते ये , मेरी ऐसी बातें सुन कर , अपने किस्से कैसे सुनाते हैं कि मुझ पर कितनी लड़कियाँ मरती थी, मेरा ही दिमाग खराब हो गया था जो तुम से शादी की, ये बाते सुन कर कितनी आग लगती है कलजे में, काश मैने भी प्यार किया होता तो मैं भी जवाब देती फाटक से कि मेरी तो किस्मत फूट गई है तुमसे शादी कर के , कभी घुमाने ले गये हो या कभी सिनेमा दिखाया है, बस जब नयी नयी शादी हुई थी तब की बातों को छोड़ कर,
लेकिन अब क्या हो सकता है बस खुद को कोस सकती हूँ या ज्यादा से ज्यादा बुक्का फाड़ कर रो सकती हूँ, अब ये ख्याली पुलाव पकाने बंद करू और रोटी बनाऊं , ये भी और बच्चे भी सब आते होंगे , कुछ न मिला तो मुझे ही नोच कर खा जाएंगे सब, चलो उठो अब काम करते करते खुद को कोस लूंगी....
अब रोवो बैठ कर अपनी अकल को, जो पढ़ाई के सिवा कहीं चलती ही नही थी, सच कहूं अब कौन सी चलती है वरना ऐसे ही कोई कहानी न बना लेती, अब तो पप्पू के पापा को भी नही कोस सकती कि हाय हाय उस वक्त मैने अक्ल का इसतेमाल क्यो न किया वरना वो तो मुझे रानी बना कर रखता ,जब ऐसा कहती तो कैसे जलभुन जाते ये , मेरी ऐसी बातें सुन कर , अपने किस्से कैसे सुनाते हैं कि मुझ पर कितनी लड़कियाँ मरती थी, मेरा ही दिमाग खराब हो गया था जो तुम से शादी की, ये बाते सुन कर कितनी आग लगती है कलजे में, काश मैने भी प्यार किया होता तो मैं भी जवाब देती फाटक से कि मेरी तो किस्मत फूट गई है तुमसे शादी कर के , कभी घुमाने ले गये हो या कभी सिनेमा दिखाया है, बस जब नयी नयी शादी हुई थी तब की बातों को छोड़ कर,
लेकिन अब क्या हो सकता है बस खुद को कोस सकती हूँ या ज्यादा से ज्यादा बुक्का फाड़ कर रो सकती हूँ, अब ये ख्याली पुलाव पकाने बंद करू और रोटी बनाऊं , ये भी और बच्चे भी सब आते होंगे , कुछ न मिला तो मुझे ही नोच कर खा जाएंगे सब, चलो उठो अब काम करते करते खुद को कोस लूंगी....
आपने कमाल का लिखा है अगर इसे और लिखे तो खूब मजा आये
ReplyDeleteजरूर प्रवीना सखी .... इसको ही और बड़ा करती हूँ... धन्यवाद
Deleteबहुत बढ़िया सखी ...कुछ बातें मन की मन में ही रह जाती है
ReplyDeleteऐसी कोई बात नही मेरे मन में उपासना सखी..... हा हा हा ... आप भी बस आप हैं..
DeleteKuch ichhaaye man me hi dabi rah jaati hai......bahut hi badiya....
ReplyDeletetheek kaha bitiya....or kai baar baate sunte sunte ajeeb se khayal aate hain
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ReplyDeleteBahut hi badhiya rachna ......yeh kafi logo ke man ki vyatha ho..... shayad
ReplyDeleteसही कहा मजुंल सखी... धन्यवाद
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