आज तुमने छेड़ दिया
ये कौन सा तार दिल का
कालिया खिल गयी
भँवरे भी गुनगुना पड़े
मत छेड़ो दिल के तारों को
सब देख लेंगे मुझे
पहचान जायेंगे
मेरी झुकी पलकों से सब
ये खुशबू कैसी आज
इन हवाओं में
ये कैसे मदहोशी है
इन फिजाओं में
कैसे छुपाऊँ ये एहसास
बंद होठों से छलकती
ये मीठी हंसी
पलकों को झुका लिया
होठों को सी लिया
धडकनों का क्या करू
कैसे रोकू इन को
ये तो बढती जाती हैं
या खुदा बचा मुझे
कहीं नज़र न लग जाये
मेरे प्यार को
ये कौन सा तार दिल का
कालिया खिल गयी
भँवरे भी गुनगुना पड़े
मत छेड़ो दिल के तारों को
सब देख लेंगे मुझे
पहचान जायेंगे
मेरी झुकी पलकों से सब
ये खुशबू कैसी आज
इन हवाओं में
ये कैसे मदहोशी है
इन फिजाओं में
कैसे छुपाऊँ ये एहसास
बंद होठों से छलकती
ये मीठी हंसी
पलकों को झुका लिया
होठों को सी लिया
धडकनों का क्या करू
कैसे रोकू इन को
ये तो बढती जाती हैं
या खुदा बचा मुझे
कहीं नज़र न लग जाये
मेरे प्यार को
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआभार संजय जी
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