Wednesday, May 30, 2012

मदहोशी

आज तुमने छेड़ दिया 
ये कौन सा तार दिल का 
कालिया खिल गयी 
भँवरे भी गुनगुना पड़े 
मत छेड़ो दिल के तारों को 
सब देख लेंगे मुझे 
पहचान जायेंगे 
मेरी झुकी पलकों से सब 
ये खुशबू कैसी आज 
इन हवाओं में 
ये कैसे मदहोशी है 
इन फिजाओं में 
कैसे छुपाऊँ ये एहसास 
बंद होठों से छलकती 
ये मीठी हंसी 
पलकों को झुका लिया 
होठों को सी लिया 
धडकनों का क्या करू 
कैसे रोकू इन को 
ये तो बढती जाती हैं 
या खुदा बचा मुझे 
कहीं नज़र न लग जाये 
मेरे प्यार को 

2 comments:

  1. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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