चकोर को देखो
कैसे दीवाना है
चाँद मुस्कुराता है
उसकी दीवानगी पर
रोज देखती हूँ मै
इन दोनों को
क्यों तरसाता है
चाँद चकोर को
क्यों दीवाना है
चकोर इसका
नहीं समझ आता
इन दोनों का खेल
क्या ये प्यार है
इन दोनों का खेल
सुनती हूँ रात भर
चकोर की आवाजे
रो पड़ती हैं आँखे
कैसे मिलाऊ चकोर को
कितना बेदर्द है ये चांद
क्यों नहीं समझता
चकोर का प्यार
क्यों तडपता है इसे
क्या कभी होगा
इन दोनों का मेल
या चलता रहेगा
बस यही खेल
कैसे दीवाना है
चाँद मुस्कुराता है
उसकी दीवानगी पर
रोज देखती हूँ मै
इन दोनों को
क्यों तरसाता है
चाँद चकोर को
क्यों दीवाना है
चकोर इसका
नहीं समझ आता
इन दोनों का खेल
क्या ये प्यार है
इन दोनों का खेल
सुनती हूँ रात भर
चकोर की आवाजे
रो पड़ती हैं आँखे
कैसे मिलाऊ चकोर को
कितना बेदर्द है ये चांद
क्यों नहीं समझता
चकोर का प्यार
क्यों तडपता है इसे
क्या कभी होगा
इन दोनों का मेल
या चलता रहेगा
बस यही खेल
सुन्दर भावाभिव्यक्ति - अपने गीत की ये पंक्ति याद आयी-
ReplyDeleteचाँद को देखे रोज चकोरी क्या बुझती है प्यास?
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
आभार श्यामल जी .....
Deleteअति सुन्दर दीदी चाँद और चकोर की अच्छी है पर उमीद भी है की कभी ये दोनों मिलेगे
ReplyDeleteशायद नही ... अनू
Deleteलेकिन उम्मीद पर तो दुनिया कायम है
क्या चकोर चाँद को पाने की उम्मीद छोड़ सकता है
अच्छी कविता.:))))
ReplyDeleteआभार... रीता जी
Deleteबस चलता रहेगा यही खेल ....बहुत खूब ..
ReplyDeleteधन्यवाद कैलाश जी
Deleteहमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.
ReplyDeleteहार्दिक आभार संजय जी .......
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