Sunday, May 27, 2012

चांद और चकोर

चकोर को देखो 
कैसे दीवाना है 
चाँद मुस्कुराता है 
उसकी दीवानगी पर 
रोज देखती हूँ मै 
इन दोनों को 
क्यों तरसाता है 
चाँद चकोर को 
क्यों दीवाना है 
चकोर इसका 
नहीं समझ आता 
इन दोनों का खेल 
क्या ये प्यार है 
इन दोनों का खेल 
सुनती हूँ रात भर 
चकोर की आवाजे 
रो पड़ती हैं आँखे 
कैसे मिलाऊ चकोर को 
कितना बेदर्द है ये चांद
क्यों नहीं समझता 
चकोर का प्यार 
क्यों तडपता है इसे 
क्या कभी होगा 
इन दोनों का मेल 
या चलता रहेगा 
बस यही खेल 

10 comments:

  1. सुन्दर भावाभिव्यक्ति - अपने गीत की ये पंक्ति याद आयी-
    चाँद को देखे रोज चकोरी क्या बुझती है प्यास?
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/

    ReplyDelete
  2. अति सुन्दर दीदी चाँद और चकोर की अच्छी है पर उमीद भी है की कभी ये दोनों मिलेगे

    ReplyDelete
    Replies
    1. शायद नही ... अनू
      लेकिन उम्मीद पर तो दुनिया कायम है
      क्या चकोर चाँद को पाने की उम्मीद छोड़ सकता है

      Delete
  3. अच्छी कविता.:))))

    ReplyDelete
  4. बस चलता रहेगा यही खेल ....बहुत खूब ..

    ReplyDelete
  5. हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.

    ReplyDelete