आज बहुत थक गयी ,काम तो रोज़ जितना ही था पर सुबह से चकरघिन्नी की तरेह घूमते घूमते एक पल को को भी नहीं भूल सकी तुम्हारी बाते ,तुम तो कह कर और करवट बदल कर सो गए लेकिन मेरी आँखों से नींद उड़ गयी ,मैं क्या इतनी बुरी हूँ जितनी तुमने मुझे बातो बातो में सुना दिया ,सब कुछ तो छोड़ दिया मैंने तुम्हारे लिए ,बस तुम और बच्चे ही मेरी जिन्दगी की धुरी बन कर रह गए ,तुमने कभी मेरी बीमारी या तकलीफ में मुझे नहीं पूछा ,मैंने कभी बुरा नहीं माना ,हमेशा सोचा हम दो हैं क्या जो ये औपचारिकता की जरुरत हो ,लेकिन आज लगा की मेरा दिल एक हाथ से ही ताली बजा रहा था तुम्हे तो कोई एहसास ही नहीं मेरे दर्द का ,आज पहली बार कहा की मुझे किसी डाक्टर को दिखा दो अब ये छाती का दर्द सहन नहीं होता और तुमने झट से करवट लेते हुए कह दिया कि तुम्हारे पास फालतू बातो के लिए समय नहीं है खुद चली जाओ ,क्या मेरा दर्द या मेरी तकलीफ सब फालतू बाते हैं और तुम्हे जरा सी छींक भी आ जाये तो मै सारी रात सो नहीं पति बार बार तुम्हे छू कर देखती रहती हूँ की कहीं बुखार तो नहीं और तुमने ,कितनी आसानी से कह दिया की चिंता न करो तुम अभी मरनेवाली नहीं ,दस को मार कर मरोगी ,कैसे चीर गए मेरा ह्रदय तुम्हारे ये शब्द ,सारी रात रोती रही और यही सोचती रही की मेरे प्यार या सेवा में कहाँ कमी रह गयी जो तुम इतने कठोर हो मेरे लिए .
हर रोज़ मुझे कामवाली पर तरस आता था जिसका पति उसे रोज़ पीटता था ,उसके जखम नज़र तो आते थे लेकिन ये घाव जो तुमने दिया मुझे शायद कभी न भर सकेगा ,तुम्हारे सो जाने के बाद सारी बाते चलचित्र की तरह आँखों के आगे घुमने लगी तुम सच में कब मेरे दुःख में भागी बने जब मुन्ना हुआ था तब भी दूकान खोलने चले गए थे कि नुक्सान न हो और मै उस समय भी बुखार में तप रही थी और मुन्ने को भी संभाल रही थी ,तब भी मन में शिकवा नहीं आया था तुम्हारे लिए यही सोचा ठीक तो कह रहे हैं कमाएंगे नहीं तो घर कैसे चलेगा ,अपनी हालत उस वक़्त भी समझ नहीं आई थी और आज भी समझ नहीं आ रही है ,आँख बंद करके तीस साल गुजार दिए तुम्हारे साथ और आज पता चला की तुम तो नितांत अजनबी हो मेरे लिए ,मई एक अजनबी के साथ रह रही थी ।
लेकिन अब शायद इस अजनबी के साथ न रह सकू ,जानती हूँ सब बाते करेंगे लेकिन कोई भी मेरी पीड़ा नहीं समझ पायेगा कि अजनबी के साथ कैसे रहा जा सकता है ,मेरा पति मेरा सर्वस्व तो कहीं खो चूका है कब का जिसका मुझे पता ही नहीं चला था ,ये तो कोई अजनबी है और किसी गैर या अजनबी के साथ रहना तो घोर पाप है ,मै कल ही बेटी के घर चली जाती हूँ फिर वहां जा कर सोचूंगी की आगे क्या करू लेकिन अब अजनबी के साथ एक पल भी नहीं ........
हर रोज़ मुझे कामवाली पर तरस आता था जिसका पति उसे रोज़ पीटता था ,उसके जखम नज़र तो आते थे लेकिन ये घाव जो तुमने दिया मुझे शायद कभी न भर सकेगा ,तुम्हारे सो जाने के बाद सारी बाते चलचित्र की तरह आँखों के आगे घुमने लगी तुम सच में कब मेरे दुःख में भागी बने जब मुन्ना हुआ था तब भी दूकान खोलने चले गए थे कि नुक्सान न हो और मै उस समय भी बुखार में तप रही थी और मुन्ने को भी संभाल रही थी ,तब भी मन में शिकवा नहीं आया था तुम्हारे लिए यही सोचा ठीक तो कह रहे हैं कमाएंगे नहीं तो घर कैसे चलेगा ,अपनी हालत उस वक़्त भी समझ नहीं आई थी और आज भी समझ नहीं आ रही है ,आँख बंद करके तीस साल गुजार दिए तुम्हारे साथ और आज पता चला की तुम तो नितांत अजनबी हो मेरे लिए ,मई एक अजनबी के साथ रह रही थी ।
लेकिन अब शायद इस अजनबी के साथ न रह सकू ,जानती हूँ सब बाते करेंगे लेकिन कोई भी मेरी पीड़ा नहीं समझ पायेगा कि अजनबी के साथ कैसे रहा जा सकता है ,मेरा पति मेरा सर्वस्व तो कहीं खो चूका है कब का जिसका मुझे पता ही नहीं चला था ,ये तो कोई अजनबी है और किसी गैर या अजनबी के साथ रहना तो घोर पाप है ,मै कल ही बेटी के घर चली जाती हूँ फिर वहां जा कर सोचूंगी की आगे क्या करू लेकिन अब अजनबी के साथ एक पल भी नहीं ........
मन की गहराई से निकली अनुभूतियाँ मन को छू गई रमा जी - आप करीब २५ सालों से जापान में रहकर हिन्दी की जो सेवा कर रहीं हैं और यहाँ की माटी की सुगंध से आपको आज भी लगाव है - वह प्रशंसनीय है - साधुवाद. -टंकण भूल पर ध्यान देने की जरूरत है
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
हार्दिक धन्यवाद श्यामल जी ......
Deletewaah......umda rachna !
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