मन तो चंचल है
इसकी उड़ान असीमित है
मन संभलता नहीं
उड़ान कम होती नहीं
मन को रोकू कैसे
उड़ान कम करू कैसे
दोनों ही एक से हैं
मेरी तो सुनते ही नहीं
न मन मानता है
न उड़ान थमती है
काश मै पंछी होती
मन को ले उडती
मनचाही उड़ान भरती
खुला आकाश होता
चंचल हवा होती
किसी की रोक न होती
असीमित उड़ान होती
नदिया की धारा होती
बस फिर और क्या
मन होता और
मन की उड़ान होती
Bahut hi khubsurat hai......
ReplyDeleteAti sunder shabdo me dhala gya hai is man aur
Iski udaan ki........
हार्दिक धन्यवाद.... तुम ने इसे पढ़ा और सराहा...गौरीका
Deleteसच में मन तो चंचल है पर ये उड़न भी अच्छी है ,बहुत अच्छी है
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद उपासना सखी.... आपने सदा प्रोत्साहन दिया है मुझे
DeleteBahut Khoob Ramaajay
ReplyDeleteमन तो चंचल है
इसकी उड़ान असीमित है...
hardik dhanywad manju sakhi
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