वो नानी का चरखा और उसकी घुन घुन ,आज भी कानो में गूंजती है वो प्यारा सा बचपन जब नानी के सूत की टोकरी छिपा देना ,सब ढूंढे लेकिन नानी की गोद में बैठ कर जब तक कहानी न सुननी तब तक टोकरी नहीं देनी
माँ की डांट की कौन परवाह करता है। नानी है न माँ को डांटने के लिए ,चरखे की तार छेड़ना और कभी लम्बा सूत कातती नानी की आँखे बंद कर देना ......आह कहाँ से लाऊं अब नानी ,बस कानो में घु घु ही रह गई चरखे की और दिल में यादे ,यहाँ विदेश में जन्मे बच्चे चरखा क्या जाने ,नानी से मिलते भी हैं तो मेहमानों की तरह ,अब तो बस यादें हैं नानी की नानी के चरखे की मेरे नानी के घर की ,क्या ये आज के बच्चे समझेंगे ये बाते .....
mujhe bhi meri naani maa ki yaad dila di aapne wo bhi aise ki charkha kat-ti thi.......
ReplyDeleteSachi....meri nani bhi ......kya waqt tha wo
Deleteमेरी नानी मेरी नानी ...एक कविता भी थी .....और नानी जो कभी ना -नी नहीं करती थी वोह नानी थी ....?
ReplyDeleteनानी बस नानी ही होती है उसे ना.. नी नही आती न... तभी तो वो नानी है.... धन्यवाद... कैलाश जी
Delete