कौन हूँ
आज पहचान खो गयी है मेरी
सिर्फ पत्नी बहु बहन और बेटी
यही नाम रह गए हैं मेरे
खुद ही खुद का नाम भूल गयी हूँ
क्या थी और क्या हूँ
कुछ याद नहीं अब
बस सिर्फ काम याद हैं
सब के लिए अपने कर्तव्य
याद रह गए हैं
खुद के लिए कुछ याद नहीं
क्या मै कुछ नहीं
इन चार नाम के सिवा
क्या मेरा स्वयम का कोई नाम नहीं
कोई वजूद नहीं
क्या जिंदगी सिर्फ कर्तव्य निभाते
सेवा करते गुज़र जायेगी
क्या औरत की कोई पहचान बनेगी कभी |
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 12/01/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद यशोदा जी ...
Deleteहार्दिक आभार मदन मोहन जी ....
ReplyDeleteअंतर्मन की पीड़ा लिए मर्मस्पर्शी रचना
ReplyDeleteNew post : दो शहीद
आभार कालिपद जी
Deleteखुद ही पहचान बनानी होगी .... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteआभार संगीता जी
Deleteअब परिस्थितियां बदल रही है ..बहुत ही सुन्दर रचना बधाई
ReplyDeleteआभार ममता जी
Deleteवाकई...अब पहचान बनानी होगी...बढ़िया
ReplyDeleteआभार रश्मि जी
Deletepraytn to hame hi karna hoga kyonki hamare sathi sirph ham hi hai.........
ReplyDeleteआभार संध्या जी
Deleteबहुत सुन्दर रचना ... बधाई
ReplyDeleteआभार मीना
Deleteआभार ओंकार जी
ReplyDelete