जिंदगी
फूलों में खेलती
सपनो को संजोती
बड़ी हो गयी बिटिया
बाहर कैसे भेजूं
नादान है बहुत
कांच जैसी
मेरी नाज़ुक बिटिया
बाहर हर कोने में
छिपे शैतान हैं
मुखोटे ओडे खड़े
बेईमान हैं
कहीं किसी ने देख लिया तो
नज़र लगा दी
मेरी राजकुमारी को तो
कैसे समझाउं इसे
ये तो बहुत नादान है
हर भेडिये से बेखबर
अनजान है
क्या समझाऊं इसे
दिल टूट न जाए इसका
सपने
बिखर न जाएँ इसके
बहुत भोली
दुनिया से अनजान है
चिंता खाए जाती है
बिटिया क्यों बड़ी हो जाती है
छोटी थी तो अच्छा था
घर में खेलती थी
अब बहार कैसे भेजू
हर कोने में छिपे शैतान हैं
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Rama sahi likha hai beti badi hoti hai to ye hi chinta sab se pahle hoti hai
ReplyDeleteसही कहा आप ने शांति जी लेकिन क्या हम अपने बच्चों को एक साफ़ सुथरा समाज नहीं दे सकते
Deleteसच में बेटी की चिंता तो रहती ही है ......बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसच कहा उपासना सखी
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