मै आ जाऊं खेलने तुमसे
मुझे कोई भी नहीं बुलाता
सभी भाई को ही बुलाते हैं
मुझे तो दूर से ही भगा देते हैं
क्या मै बहुत बुरी हूँ
मै तो किसी को तंग नहीं करती
माँ का काम भी करती हूँ
बाबा के पैर भी दबाती हूँ
किसी से लडती भी नहीं
फिर क्यों सब भगा देते हैं
क्यों सब को मै बुरी लगती हूँ
मै तो पाठशाला भी रोज़ जाती हूँ
प्रथम भी आती हूँ
पर किसी को ख़ुशी नहीं होती
सब भाई को ही प्यार करते हैं
वो तो पड़ता भी नहीं
सब से लड़ता भी है
बाबा को भी जवाब देता है
माँ से पैसे मांगता है
फिर भी सब उसी को
प्यार करते हैं
खुश भी उसी के आने पर होते हैं
मुझे बुला लो ना
मै सची किसी को तंग नहीं करती
मेरा नाम परी है
मै बहुत दूर से आई हूँ
मुझे माँ बाबा चाहिए
क्या उन्हें परी नहीं चाहिए
जल्दी बुलाना मुझे
नहीं तो रूठ जाउंगी सब से
टा टा ..........
बेहद ही सुन्दर .... श्रेष्ठ रचना...शुभ कामनायें !!!
ReplyDeleteहार्दिक आभार संजय जी
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार डेजी
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