Monday, January 11, 2016

झुकी डालियाँ



झुकते गये निभाने के लिये हर रिश्ता
सुना था फल झुकी हुई डालियों पर लगते हैं
लोगों ने हमारे झुकने को 
समझ लिया हमारी कमजोरी 
जो भी गुज़रा पास से हमारे
पत्थर मार कर आगे बढ़ गया

8 comments:

  1. लोग अकसर हमारी ख़ामोशी को कमजोरी समझने की भूल कर बैठते हैं।

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  2. लोग अकसर हमारी ख़ामोशी को कमजोरी समझने की भूल कर बैठते हैं।

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14 - 01- 2016 को चर्चा मंच पर <a href="http://charchamanch.blogspot.com/2016/01/2221.html> चर्चा - 2221 </a> में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  4. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार! मकर संक्रान्ति पर्व की शुभकामनाएँ!

    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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